जीण माता के भाई हैं हर्षनाथ भैरव - Harshnath Bhairav Mandir Sikar, इसमें सीकर के पास हर्ष के पहाड़ पर स्थित हर्षनाथ भैरव मंदिर की जानकारी दी गई है।
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सीकर शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर हर्ष गिरि के पहाड़ पर हर्षनाथ भैरव का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर के पास प्रसिद्ध हर्षनाथ शिव के मूल मंदिर के साथ-साथ उत्तर मध्यकालीन मंदिर भी स्थित है।
हर्षनाथ भैरव का यह मंदिर हर्ष नामक गाँव के पास हर्ष गिरि पर्वत पर स्थित है जिसकी ऊँचाई लगभग 3000 फीट की है।
गाँव से पर्वत के ऊपर मंदिर तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। पैदल जाने वालों के लिए एक रास्ता पगडंडी के रूप में मंदिर की स्थापना के समय का है जिसकी लम्बाई लगभग ढाई किलोमीटर है।
दूसरा रास्ता पक्की सड़क के रूप में वाहनों के लिए है जिसकी लम्बाई लगभग आठ-नौ किलोमीटर की है। वर्षों पूर्व इस पक्की सड़क का निर्माण समाजसेवक बद्रीनारायण सोढाणी ने अमेरिकन संस्था 'कांसा' के सहयोग से करवाया था।
पहाड़ के ऊपर जाने पर इसका एक बड़ा भूभाग समतल भूमि के रूप में है। इसी भूमि पर चौहान (चहमान) शासकों के कुल देवता हर्षनाथ शिव के मंदिर से दक्षिण दिशा में कुछ दूरी पर हर्ष नाथ भैरव का यह मन्दिर स्थित है।
विक्रम संवत 1030 (973 ईस्वी) के एक अभिलेख के अनुसार इस सम्पूर्ण मंदिर परिसर का निर्माण चौहान शासक विग्रहराज प्रथम के शासनकाल में हुआ था।
ऐसे प्रमाण है कि जब ये मंदिर बने थे तब उस समय यहाँ विभिन्न देवी देवताओं के कुल चौरासी छोटे-छोटे मन्दिर और बने हुए थे। मंदिर के अन्दर प्रवेश करने पर छोटा चौक मौजूद है। इस चौक में चारों तरफ स्तंभ एवं प्रतिमाएँ ही नजर आती हैं।
शिव मंदिर की तरह यहाँ पर भी स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की गई है जिन पर कई प्रतिमाएँ मौजूद हैं जिनमें अर्धनारीश्वर गणपति की प्रतिमा भी मौजूद है। भगवान गणेश का अर्धनारीश्वर रूप संभवतः देश भर में केवल इसी स्थान पर ही मौजूद है।
मंदिर के मध्य भाग में गुफा जैसा एक तलघर है। इसमें प्रवेश करने पर सामने सोलह भुजाओं वाली दुर्गा माता की प्रतिमा विकराल रूप में है। माता की प्रत्येक भुजा में अलग-अलग प्रकार के अस्त्र शस्त्र हैं।
पास ही महिषासुर मर्दिनी के रूप में माता की खंडित प्रतिमा मौजूद है। इस रूप में माता ने महिसासुर का वध कर उसके ऊपर अपना पाँव रखा हुआ है।
यहाँ से आगे जाने पर भैरव का मंदिर है जिसमें अलग-अलग रूप में भैरव की प्रतिमा मौजूद है। भैरव के सम्मुख वर्षों से अखंड ज्योत जलती रहती है। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं द्वारा नारियल पर डोरा बाँध कर उसे यहाँ टांगा जाता है।
इस भैरव मंदिर का सम्बन्ध जीणमाता के भाई हर्ष से जुड़ा हुआ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर हर्ष ने तपस्या की थी और बाद में अपनी साधना के बल पर शिव के एक रूप भैरव में समाहित हो गया था।
जीणमाता के दर्शनों को आए सभी श्रद्धालु उनके भाई एवं भोलेनाथ के रूप हर्षनाथ भैरव के दर्शन करने अवश्य आते हैं।
सत्रहवीं शताब्दी में औरंगजेब ने हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ने के अभियान के तहत अपने एक सेनापति दराब खान को शेखावाटी क्षेत्र के मंदिरों को तोड़ने के लिए भेजा।
विक्रम संवत् 1735 (1678 ईस्वी) में मुगल सेना ने यहाँ पर मौजूद शिव मंदिर, हर्षनाथ भैरव मंदिर के साथ-साथ अन्य सभी 84 मंदिरों को तोड़कर मूर्तियों को खंडित कर दिया था।
बाद के कालों में कई मूर्तियों को तो मंदिर की दीवारों में चुनवा दिया गया था। विखंडित शिव मंदिर के अंशों को एकत्रित कर पुनः जमाया गया है। यह जमा हुआ शिव मंदिर भी काफी भव्य लगता है।
वर्तमान में इस स्थान की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत है। यहाँ की कलात्मक मूर्तियाँ और शिलालेख सीकर, अजमेर, दिल्ली सहित देश विदेश के अनेक संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
वर्ष 1934 से 1938 तक सीकर के प्रशासक रहे कैप्टेन वेब ने इस विरासत को बचाने और संरक्षित करने का काफी प्रयास किया। इस पर्वत पर सन् 1971 में सीकर जिला पुलिस के वीएचएफ संचार का रिपिटर केन्द्र स्थापित किया गया।
वर्ष 2004 में इनरकोन इंडिया लिमिटेड ने पवन विद्युत परियोजना प्रारम्भ की और कई पवन चक्कियाँ लगाईं। इन चक्कियों के सैकड़ों फीट लम्बे पंखे वायु वेग से घूमते रहते हैं और बिजली का उत्पादन करते हैं।
इन पंखों की वजह से दूर से यह स्थान बड़ा आकर्षक लगता है। वर्ष 2015 में तत्कालीन वन मंत्री राजकुमार रिणवां ने हर्ष पर्वत का दौरा कर यहाँ राजस्थान का सबसे ऊँचा रोप-वे बनाने के साथ रॉक क्लाइंबिंग भी शुरू करने की बात कही थी।
अगर ऐसा हो पाता है तो हर्ष पर्वत हिल स्टेशन के साथ-साथ एक बड़े पर्यटक स्थल के रूप में उभरकर हमारे सम्मुख होगा।
हर्षनाथ भैरव मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Harshnath Bhairav Mandir
हर्षनाथ भैरव मंदिर का वीडियो - Video of Harshnath Bhairav Mandir
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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