उदयपुर को सुरक्षित रखने वाले पाँच दरवाजे - Udaipur Protected by These 5 Gates, इसमें उदयपुर के पास दर्रों में बने शहर के बाहरी दरवाजों की जानकारी है।
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1567-68 ईस्वी में बादशाह अकबर के चित्तौड़ पर आक्रमण से पहले ही महाराणा उदय सिंह ने मेवाड़ की नई राजधानी के लिए एक सुरक्षित जगह की तलाश शुरू कर दी थी।
इसके लिए उन्होंने चारों तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरे हुए एक स्थान का चयन किया जिसे गिर्वा कहा जाता था।
महाराणा उदय सिंह ने इस जगह पर 1553 ईस्वी में अक्षय तृतीया के दिन उदयपुर नगर की स्थापना की, जो बाद में कई सदियों तक मेवाड़ की राजधानी बना रहा।
उदयपुर की स्थापना का प्रमाण सुखेर गाँव के पीपलाज माता मंदिर के एक शिलालेख के साथ एक ब्राह्मण परिवार से प्राप्त भूमिदान के ऐतिहासिक ताम्रपत्र से मिलता हैं।
साथ ही महाराणा उदय सिंह द्वारा मोती मगरी पर बनवाया गया मोती महल भी इस बात का जीता जागता प्रमाण है।
ध्यान रहे कि कई जगह पर उदयपुर की स्थापना 1559 ईस्वी में अक्षय तृतीया के दिन भी बताई जाती है लेकिन हमारे विचार से इस वर्ष उदयपुर की जगह यहाँ के सिटी पेलेस का निर्माण हुआ था।
वैसे तो उदयपुर के चारों तरफ की ऊँची पहाड़ियाँ एक सुरक्षा दीवार का काम करती थी, लेकिन इसकी सुरक्षा को और ज्यादा मजबूत करने के लिए यहाँ के महाराणाओं ने इन पहाड़ियों के बीच के दर्रों को दरवाजों द्वारा बंद करवाया।
इस प्रकार उदयपुर की रक्षा के लिए राजमहल से लगभग 10-15 किलोमीटर की दूरी पर चारों दिशाओं में पाँच मजबूत दरवाजों का निर्माण करवाया गया।
ये दरवाजे चीरवा घाटी, देबारी घाटी, घसियार, भल्लो का गुड़ा और केवड़ा की नाल में बनाए गए। उस समय उदयपुर में प्रवेश करने के लिए इन दरवाजों से होकर गुजरना पड़ता था।
इन दरवाजों में अब केवल देबारी और चीरवा घाटी वाले दरवाजे ही सुरक्षित बचे हैं बाकी तीनों देखरेख के अभाव में खंडहर में बदल कर लगभग समाप्त हो गए हैं।
आज हम इन पाँचों दरवाजों के बारे में बात करते हैं, साथ ही इनके इतिहास के साथ आज की हालत को भी देखते हैं। आइए शुरू करते हैं।
चीरवा घाटी का दरवाजा - Chirwa Darwaja
सबसे पहले हम चीरवा घाटी के दरवाजे की बात करते हैं। यह दरवाजा उदयपुर के City Palace से लगभग 16 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में चीरवा घाटी में बना हुआ है।
इस दरवाजे का निर्माण 1620-1652 ईस्वी के बीच महाराणा कर्ण सिंह और महाराणा जगत सिंह प्रथम के कार्यकाल में हुआ था।
रियासत काल में यह एक व्यापारिक मार्ग था और यहाँ पर राहगीरों से टैक्स वसूल किया जाता था। महाराणा राज सिंह के समय इस जगह पर औरंगजेब और मेवाड़ की सेना के बीच में युद्ध भी हुआ था।
लगभग आठ मीटर ऊँचा, छः मीटर मोटा और पौने चार मीटर चौड़ा यह दरवाजा काफी मजबूत दिखाई देता है। दरवाजे के दोनों तरफ पहाड़ी पर सुरक्षा दीवार भी बनी है।
कुछ वर्ष पहले तक, उदयपुर से नाथद्वारा जाने के लिए इसी दरवाजे से होकर मुख्य सड़क गुजरती थी लेकिन अब इस दरवाजे के नीचे सुरंग बनाकर नया रास्ता बना दिया गया है।
अब इस दरवाजे से गुजरने वाली पुरानी सर्पीलाकार सड़क को फूलों की घाटी के रूप में बदल दिया गया है। फूलों की घाटी अब उदयपुर का एक मुख्य Tourist Destination है जहाँ पर Adventurous Activities के साथ Zipline भी होती है।
अब आपको दरवाजे तक जाने के लिए Entry Ticket लेना पड़ता है इसलिए आप जब भी फूलों की घाटी में Zipline के लिए जाएँ तो इस दरवाजे को जरूर देखें।
देबारी घाटी का दरवाजा - Debari Darwaja
अब हम बात करते हैं देबारी घाटी के दरवाजे की, यह दरवाजा उदयपुर के City Palace से लगभग 15 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में चित्तौड़गढ़ हाईवे पर देबारी घाटी में बना हुआ है।
देबारी में किसी समय देवड़ा राजपूतों का निवास हुआ करता था इसलिए इस जगह को देवड़ा बारी भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे देववारी भी कहते हैं।
देबारी का दरवाजा भी काफी मजबूत है जिसके दोनों तरफ किले की दीवार के अवशेष हैं। दक्षिण दिशा की दीवार उदयपुर चित्तौड़ राजमार्ग के बनने के कारण नष्ट हो गई है।
इस दरवाजे का निर्माण महाराणा उदय सिंह ने करवाया था जिसे अकबर, जहांगीर आदि ने काफी नुकसान पहुँचाया। महाराणा राज सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाकर इसे और ज्यादा मजबूत बनवाया।
दरवाजे के पास में ही एक प्राचीन बावड़ी बनी है जिसके सामने की तरफ भोलेनाथ का राजराजेश्वर मंदिर बना हुआ है।
दरवाजे के सामने कुछ छतरियाँ बनी है जो इस जगह पर हुए युद्ध की गवाही देती है। इन छतरियों में एक छतरी बल्लू जी चंपावत की है।
भल्लो का गुड़ा का दरवाजा - Bhallo Ka Gudha Darwaja or Lakadkot Darwaja
अब हम बात करते हैं भल्लो का गुड़ा के दरवाजे की, यह दरवाजा उदयपुर के City Palace से लगभग 20 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व दिशा में लकड़वास गाँव के पास भल्लो का गुड़ा में बना हुआ है।
लकड़वास गाँव के पास बने होने की वजह से इस दरवाजे को लकड़कोट कहा जाता है। लगभग दस मीटर ऊँचाई वाला यह दरवाजा, बड़ा मगरा के पास पहाड़ी की पूर्वी ढलान पर बड़ी जर्जर हालत में है।
यह दरवाजा एक छोटे किले का हिस्सा था, जिसे बाहरी हमलावरों के प्रवेश को रोकने के लिए पहाड़ी के दर्रे में बनाया गया था। दरवाजे के दोनों तरफ सुरक्षा के लिए गोल बुर्ज के साथ पहाड़ी के ऊपर एक लंबी दीवार भी बनाई गई थी।
केवड़े की नाल का दरवाजा - Kevda Ki Naal Darwaja
अब हम बात करते हैं केवड़े की नाल के दरवाजे की, केवड़े की नाल, उदयपुर के City Palace से लगभग 15 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में एक दर्रा है।
पुराने समय में उदयपुर में प्रवेश के लिए इस दर्रे में एक प्रवेश द्वार था, जिसके अब केवल अवशेष रह गए हैं। केवड़े की नाल में घना जंगल है। अब इस नाल में से उदयपुर को जयसमंद से जोड़ने वाली सड़क गुजरती है।
घसियार का दरवाजा - Ghasiyar Darwaja
अब हम अंतिम दरवाजे की बात करते हैं जिसका नाम है घसियार का दरवाजा। यह दरवाजा उदयपुर के City Palace से लगभग 20 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में घसियार के श्रीनाथजी मंदिर के पास उदयपुर गोगुंदा हाईवे पर बना है।
हाईवे से राइट साइड में कुंडेश्वर महादेव मंदिर की तरफ जाने वाली सड़क की शुरुआत में ही इस दरवाजे के खंडहर मौजूद है। अब इस दरवाजे का थोड़ा सा अवशेष ही बचा है जिसे देखने पर यह दरवाजे जैसा भी नहीं लगता है।
इसके आस पास की सुरक्षा दीवार भी नष्ट हो चुकी है लेकिन पास की पहाड़ी पर अभी भी प्राचीन सुरक्षा दीवार के अवशेष नजर आते हैं।
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इस तरह की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
उदयपुर के दरवाजों की मैप लोकेशन - Map Location of Udaipur Outer Gates
उदयपुर के बाहरी दरवाजों का वीडियो - Video of Outer Gates of Udaipur
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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