कामकला से प्रेरित मूर्तियों वाला कलात्मक मंदिर - Saas Bahu Mandir Nagda Udaipur

कामकला से प्रेरित मूर्तियों वाला कलात्मक मंदिर - Saas Bahu Mandir Nagda Udaipur, इसमें उदयपुर के सहस्रबाहु मंदिर यानी सास बहू मंदिर की जानकारी है।

Saas Bahu Mandir Nagda Udaipur

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मेवाड़ की भूमि अपने शौर्य और बलिदान के साथ-साथ अपनी कलात्मक एवं भव्य विरासत के लिए विख्यात है। इसी विरासत को समृद्ध करता एक मंदिर है सास बहू का मंदिर।

यह मंदिर अपने स्थापत्य एवं कला की वजह से मेवाड़ का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहाँ की स्थापत्य कला को देखकर हमें माउंट आबू पर स्थित दिलवाडा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है।

सास बहू का यह मंदिर उदयपुर से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर एकलिंगजी के मंदिर से पहले नागदा कस्बे में बाघेला तालाब के निकट स्थित है। मंदिर मुख्य सड़क से थोड़ा अन्दर जाने पर आता है।

मेवाड़ की प्राचीन राजधानी नागदा - Nagda, the ancient capital of Mewar


इस मंदिर के सम्बन्ध में जानने से पहले थोडा नागदा के बारे में जान लेते हैं। नागदा कस्बे को मेवाड़ के गुहिल वंशी चतुर्थ शासक नागादित्य (Nagaditya) ने बसाया था जिसका मूल नाम नागहद, नागद्रह या नगह्रिदा (Nagahrida) था।

गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक नागदा मेवाड़ के गुहिल वंशी राजाओं की राजधानी रहा। उस समय यह धर्म व संस्कृति का प्रमुख केंद्र था।

बताया जाता है कि प्राचीन समय में यहाँ पर दो हजार से अधिक मंदिर स्थित थे जिनमें से कुछ तो बाघेला तालाब में डूब गए और कइयों को मुस्लिम आक्रान्ताओं ने नष्ट कर दिया।

नागदा के प्रमुख मंदिरों में एकलिंग जी का मंदिर, सास बहू का मंदिर, अद्भुत जी का मंदिर, खुमान रावल का देवरा आदि कई मंदिर शामिल थे।

तेरहवीं शताब्दी में 1222 से लेकर 1229 ईस्वी तक मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी नागदा पर दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश (1210-1236 ईस्‍वी) के आक्रमण हुए।

1229 ईस्वी में नागदा के पास भूताला के युद्ध में गुहिल वंशी रावल जैत्र सिंह की पराजय होने के बाद इल्तुतमिश की सेना ने पूरा नागदा नष्ट कर दिया।

नागदा को नष्ट करने के साथ उसने यहाँ के लगभग सभी मंदिरों को या तो पूरी तरह तोड़ दिया या उनकी प्रतिमाओं को खंडित कर दिया। आज भी नागदा में जगह-जगह पर अनेक मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं जो देखरेख के अभाव में खंडहरों में बदलते जा रहे हैं।

भूताला के युद्ध के बाद रावल जैत्र सिंह ने नागदा को हमेशा के लिए छोड़ कर चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया।

नागदा में महाराणा लाखा के पुत्र महाराणा मोकल के अपने भाई बाघ सिंह के नाम से एक तालाब बनवाया था जिसे बाघेला तालाब के नाम से जाना जाता है।

सास बहू के मंदिर की यात्रा और विशेषता - Visit and specialty of Saas Bahu Temple


इसी बाघेला तालाब के एक छोर पर स्थित सास बहू का मंदिर परिसर एक ऊँची जगती पर स्थित है जिसमें प्रवेश करने के लिए पूर्व दिशा में एक मकर तोरण द्वार है।

ग्यारहवीं सदी के प्रारंभ में निर्मित यह मंदिर परिसर अपनी विकसित शैली एवं प्रचुर अलंकरण युक्त शिल्पकला के लिए काफी विख्यात है। मंदिर परिसर लगभग 32 मीटर लंबा और 22 मीटर चौड़ा है।

इस परिसर में मुख्य रूप से दो मंदिर मौजूद हैं जिन्हें सास और बहू के मंदिर के नाम से जाना जाता है। परिसर में अनेक छोटे मंदिरों के अवशेष भी स्थित हैं। अधिकांश मंदिर देख रेख के अभाव में क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।

यहाँ कि सबसे ख़ास बात यह कि यहाँ पर इन दोनों मंदिरों में कोई मूर्ति नहीं है। संभवतः ये मूर्तियाँ या तो देखभाल के अभाव में या चोरी हो जाने के कारण या मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट कर दिए जाने के कारण अब नहीं है।

मंदिर परिसर में दो प्रमुख मंदिर है जिनमें एक बड़ा और दूसरा छोटा है। बड़े मंदिर को सास का मंदिर एवं छोटे मंदिर को बहू के मंदिर के नाम से जाना जाता है। सास का मंदिर पहले बनने के कारण सामूहिक रूप से दोनों को सास बहू के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

सास का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है एवं बहू का मंदिर भगवान शिव या शेषनाग को समर्पित है। प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में यहाँ पर कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल का शासन था।

इनकी रानी भगवान विष्णु की भक्त थी तो इन्होंने अपनी रानी के लिए पूजा अर्चना हेतु भगवान विष्णु को समर्पित एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जिसे सहस्रबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता था।

गौरतलब है कि सहस्रबाहु का मतलब हजार भुजाओं वाला होता है और भगवान विष्णु को ही सहस्रबाहु के नाम से जाना जाता है।

कुछ वर्षों बाद राजा के पुत्र का विवाह हुआ। इनकी पुत्रवधू शिवजी की भक्त थी जिस वजह से इन्होंने अपनी पुत्रवधू के लिए पूजा अर्चना हेतु इसी मंदिर के निकट भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनवाया।


मंदिर में सबसे पहले भगवान विष्णु की स्थापना हुई थी इसलिए काफी वर्षों तक इन दोनों मंदिरों को सहस्रबाहु मंदिर के नाम से ही जाना जाता रहा। कालांतर में सहस्रबाहु का नाम बिगड़ते-बिगड़ते सास बहू हो गया।

दोनों मंदिर पंचायतन शैली में बने हुए हैं और चारों तरफ से अनेक छोटे मंदिरों से घिरे हुए हैं। इन छोटे मंदिरों की संख्या संभवतः दस है और इनमें से अधिकांश क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।

मंदिर की बाहरी एवं आंतरिक दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों की तरह असंख्य कलात्मक मूर्तियाँ बनी हुई है। अधिकांश मूर्तियाँ तत्कालीन धार्मिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक जीवन को दर्शाती हैं लेकिन इनमें से कुछ कामशास्त्र से भी सम्बंधित है।

प्रत्येक मंदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल, पार्श्वालिंद युक्त रंग मंडप, सभामंडप एवं अर्ध मंडप युक्त है। ये सभी काफी भव्य एवं कलात्मकता लिए हुए हैं। मुख्य मंदिर के सामने मकर तोरण युक्त नक्काशी युक्त कलात्मक द्वार स्थित है।

भद्ररथ में ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु की आकृतियाँ हैं जो क्रमशः राम, बलराम एवं परशुराम की मूर्ति से आच्छादित है। मंडप का बाहरी एवं अंदरूनी भाग, स्तम्भ, प्रस्तारवाद एवं द्वार काफी अलंकृत है।

बहू के मंदिर की अष्टकोणीय छत आठ स्तंभों पर टिकी है। प्रत्येक स्तम्भ पर एक पत्थर से निर्मित प्रतिमाएँ स्थित है जिनके ऊपरी हिस्से नक्काशीदार महिलाओं की मूर्तियों से अलंकृत है। ये प्रतिमाएँ नारी सौन्दर्य को प्रदर्शित करने के लिए उल्लेखनीय है।

मुख्य मंदिर के मंडप में स्थित मकर तोरण या मेहराब काफी अलंकृत है। मंदिर की छत, दीवारें एवं स्तम्भ अनेक कलात्मक मूर्तियों एवं बेल बूटों से अलंकृत हैं। मंदिर की दीवारों को रामायण की विभिन्न घटनाओं से अलंकृत किया हुआ है।

मंदिर की तीनों दिशाओं में तीन दरवाजे हैं और चौथी दिशा में एक कक्ष है जो अकसर बंद रहता है। मंदिर के प्रवेश-द्वार पर बने छज्जों पर महाभारत की पूरी कथा अंकित है एवं प्रवेश द्वार पर देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ स्थित है।

पिछले एक हजार से अधिक वर्षों से ये मंदिर अपनी जगह पर अडिग खड़े हैं। समय की मार से कई जगह से दीवारें काली पड़ गई है। मुस्लिम आक्रान्ताओं के आक्रमणों की वजह और कई मूर्तियाँ खंडित हो गई हैं।

कहते हैं कि तेरहवीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश ने इस मंदिर को नुकसान पहुँचाने के साथ पूरे नागदा को जलाकर नष्ट कर दिया।

मुगलों के समय यहाँ मुगल आक्रमण भी हुए। ऐसा बताया जाता है कि मुगलों ने इस मंदिर को रेत से ढकवा दिया था।

यहाँ पर देखने लायक मंदिरों में से खुमान रावल का देवरा, अद्भुत जी का मंदिर एवं बाघेला तालाब में डूबा सूर्य मंदिर आदि हैं। पानी की वजह से सूर्य मंदिर में जाना मुश्किल है।

अगर आपको यहाँ जाने का मौका मिले तो आप यह जरूर देख पाएँगे कि प्राचीन समय के एक समृद्ध नगर और विरासत के वर्तमान में क्या हाल है। फिर भी जो धरोहरें बची हैं वे अपने आप में बेमिसाल है।

सास बहू का मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Saas Bahu Mandir



सास बहू का मंदिर का वीडियो - Video of Saas Bahu Mandir



लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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Ramesh Sharma

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