कई संतों की तपोभूमि रहा है चारोड़ा धाम - Charoda Dham Khandela

कई संतों की तपोभूमि रहा है चारोड़ा धाम - Charoda Dham Khandela, इसमें खंडेला में मौजूद संतों की तपोभूमि चारोड़ा धाम के बारे में जानकारी दी गई है।

Charoda Dham Khandela

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प्राचीन काल से ही खंडेला कई धार्मिक सम्प्रदायों की गतिविधि का केंद्र रहा है जिनमें जैन, शैव, वैष्णव आदि प्रमुख हैं। साथ ही यह कस्बा कई संतों की कर्म भूमि और जन्म भूमि भी रहा है।

ऐसी ही संतों की भूमि का नाम है चारोड़ा धाम। प्राचीन काल से ही यह स्थान संतों की आश्रय स्थली होने के साथ-साथ तपोस्थली भी रहा है।

इस स्थान का सम्बन्ध वैष्णव वैरागी चतु:संप्रदाय के संतों से अधिक रहा है। यह स्थान बाबा विश्वंभर दास जैसे संतों की तपोभूमि रहने के कारण काफी विख्यात है। अगर आप यहाँ जाएँगे तो आपको कई संत दिखाई दे जाएँगे।

यह स्थान खंडेला राजपरिवार की छतरियों के पास में ही स्थित है। इसके बगल से चामुण्डा माता के मंदिर में जाने का रास्ता है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों से आच्छादित है।

चारोड़ा धाम में शिव मंदिर, श्री शेष भगवान का मंदिर, नृसिंह सागर तालाब और कुछ छतरियाँ बनी हुई है। नृसिंह सागर तालाब को चारोड़ा तालाब के नाम से भी जाना जाता है।

यहाँ का शिव मंदिर प्राचीन प्रतीत होता है। मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा स्थित है। मंदिर के शिखर की बनावट भी प्राचीन प्रतीत होती है।

शेष भगवान का मंदिर शिव मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है। यह मंदिर अधिक पुराना प्रतीत नहीं होता है। इसमें सुन्दर प्रतिमाएँ लगी हुई हैं।

शिव मंदिर के बगल में एक सुन्दर छतरी बनी हुई है जिसमें काँच की सुन्दर नक्काशी की हुई है। चारोड़ा धाम प्रांगण में कुछ और छतरियाँ भी बनी हुई है जो संभवतः संतों की समाधियाँ हैं।


इन सभी छतरियों में भक्तावर दासजी की छतरी उल्लेखनीय है। भक्तावर दास जी पुरोहित जाति के महासिद्ध और चमत्कारी संत थे। बालबक्श दीवान इनके भक्त थे।

इनका लोगों का देखा हुआ चमत्कार ये है कि बालबक्श दीवान को नेत्र रोग होने पर वे अन्धता की स्थिति में आ गए थे, तब भक्तावरदासजी उनके रोग को खुद ले कर उन्हें नेत्र ज्योति प्रदान की।

शिव मंदिर के पीछे की तरफ एक तालाब बना हुआ है जिसे नृसिंह सागर, नृसिंह सरोवर और चारोड़ा तालाब आदि कई नामों से जाना जाता है। नृसिंह सागर का इतिहास काफी पुराना है। इस स्थान का सम्बन्ध चाढ़ नामक व्यक्ति से रहा है।

बताया जाता है कि विक्रम संवत् 1439 (1382 ईस्वी) में चाढ़ को नृसिंह भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर वर्तमान चारोड़ा तालाब की जगह पर अपनी मूर्ति के दबे होने की जानकारी दी।

अगली सुबह नृसिंह चतुर्दशी के दिन चाढ़ ने उस स्थान की खुदाई करवाई तो सवा प्रहर के समय नृसिंह की मूर्ति निकली।

जिस स्थान पर नृसिंह की मूर्ति निकली उस स्थान पर चाढ़ ने एक तालाब बनवाया जिसे आज भी चारोड़ा (चाढोड़ा) के नाम से जाना जाता है। समय के साथ-साथ यह तालाब एक कुंड की शक्ल में तबदील हो गया।

चारोड़ाधाम के रसोड़ा तालाब में कई बार प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख मिले हैं। तालाब में मिली छठी शताब्दी की मूर्तियों से पता चलता है कि इसके आसपास कोई भव्य अर्धनारीश्वर मंदिर हुआ करता था।

रसोड़ा जोहड़ से मिले शिलालेख से पता चलता है कि इस अर्धनारीश्वर मंदिर का निर्माण आदित्य नाग ने विक्रम संवत 701 में करवाया था जिसे विक्रम संवत 1199 में पठानों ने ध्वस्त कर दिया। इस मंदिर का जिक्र कई इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में भी किया है।

ऐसा माना जाता है कि प्रतिहार कालीन यह विशाल मंदिर कई मंदिरों का समूह था जिनमें गणेशजी, शिव-पार्वती, स्कन्द और विष्णु की मूर्तियाँ विराजित थी।

गौरतलब है कि मुगल शासक औरंगजेब के सेनापति दराब खाँ, खंडेला के मंदिरों पर आक्रमण करने आया जिसको रोकने के लिए खंडेला राजा बहादुर सिंह के साथ छापोली नरेश सुजान सिंह सहित कई राजपूत योद्धा आगे आए।

चैत्र के महीने में विक्रम संवत 1736 यानी 1679 ईस्वी में बड़ा पाना गढ़ के काले दरवाजे के पास भयानक युद्ध हुआ जिसमें कई राजपूत योद्धा शहीद हुए।

अगर आप धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों को देखने में रुचि रखते हैं तो आपको इस स्थान को अवश्य देखना चाहिए।

चारोड़ा धाम की मैप लोकेशन - Map Location of Charoda Dham



चारोड़ा धाम का वीडियो - Video of Charoda Dham



लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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Ramesh Sharma

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