बावन बावड़ियों वाले खंडेला की कुछ बावड़ियाँ - Khandela Ki Bawadiyan

बावन बावड़ियों वाले खंडेला की कुछ बावड़ियाँ - Khandela Ki Bawadiyan, इसमें रियासत काल में खंडेला के मुख्य पेयजल स्त्रोत के बारे में जानकारी दी गई है।

Khandela Ki Bawadiyan

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सीकर जिले का खंडेला कस्बा अपने गोटा उद्योग एवं ऐतिहासिक धरोहरों के कारण सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। हजारों वर्ष पुराने इस कस्बे ने अपने आगोश में कई ऐतिहासिक विरासतों को छुपा कर रखा है।

इन धरोहरों में बावडियों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। ये बावड़ियाँ राजाओं, रानियों, नगर सेठों द्वारा बनवाई गई हैं।

किसी समय खंडेला में कुल 52 बावडियाँ हुआ करती थी जिसकी वजह से इसे बावन बावडियों वाला खंडेला या बावडियों का शहर कहा जाता था।

इन बावडियों में कालीबाय, बहूजी, सोनगिरी, मूनका, पलसानिया, मांजी, द्रौपदी, पोद्दार, काना, लाला, द्वारकादास आदि के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।

आज हम खंडेला की कुछ ऐतिहासिक बावड़ियों के बारे में बात करके इनके इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे।

सोनगिरी बावड़ी या सोंगरी बावड़ी - Songiri Stepwell


खंडेला की बावड़ियों में एक ऐसी ही भव्य बावड़ी है सोनगिरी बावड़ी। इस बावड़ी को सोंगरी बावड़ी, सोंगरा बावड़ी आदि नामों से भी जाना जाता है।

यह बावड़ी खंडेला कस्बे में नगरपालिका भवन के पास में स्थित है। कई सदियों पुरानी यह बावड़ी काफी भव्य है जिसे हम खंडेला की पहचान भी कह सकते हैं।

बावड़ी के पीछे की तरफ दिशा के देवता दिक्पाल की मूर्ति बनी हुई है। यहाँ से आगे बावड़ी से जुड़ा हुआ एक प्राचीन कुआँ स्थित है जिसकी गहराई काफी अधिक है।

थोड़ा आगे जाने पर बावड़ी में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। ऊपर से देखने पर बावड़ी की गहराई लगभग तीन मंजिला प्रतीत होती है लेकिन नीचे जाकर देखने पर ऐसा लगता है कि यह चार मंजिला है।

अन्दर से बावड़ी की बनावट काफी सुन्दर है। जो पत्थर इस बावड़ी के निर्माण में काम में लिया गया है वह पत्थर शायद कहीं और से लाया गया है।


पूरी बावड़ी तराशे हुए पत्थरों से निर्मित है और ऐसा लगता है कि जैसे इसे बनाने में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। पत्थरों को पुरानी तकनीक से इंटर लॉक किया गया है।

बावड़ी के सभी स्तम्भ और कंगूरे कलात्मक है। नीचे की मंजिल पर एक जगह शिलालेख लगा हुआ है। इस शिलालेख की पूरी भाषा तो समझ में नहीं आती लेकिन एक जगह सोनगिरी बावड़ी लिखा हुआ शब्द स्पष्ट दिखाई देता है।

बावड़ी को देखकर ऐसा लगता है कि किसी समय यह खंडेला की शान रही होगी। इस बावड़ी ने खंडेला के निवासियों के साथ-साथ राहगीरों की प्यास को भी अपने शीतल और निर्मल जल से बुझाया होगा।

वर्तमान में रसूखदारों की बढती रुचि की वजह से अब इस बावड़ी तक पहुँचना थोड़ा दूभर हो गया है। वैसे मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत प्रशासन इसकी साफ सफाई जरूर करवाता रहा है।

बहूजी की बावड़ी - Bahuji Stepwell


खंडेला में रानी द्वारा बनाई गई एक बावड़ी का नाम है बहूजी या रानीजी की बावड़ी। यह बावड़ी राजपरिवार की छतरियों से आगे छोटे पाने के राजपरिवार के बाग से कुछ दूरी पर बनी हुई है।

वर्तमान में यह बावड़ी निजी संपत्ति के रूप में मौजूद है लेकिन प्राचीन काल में यह बावड़ी राहगीरों, तीर्थ यात्रियों के साथ-साथ स्थानीय निवासियों की प्यास बुझाती थी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण राजा बहादुर सिंह की रानी गौड़जी ने विक्रम संवत 1749 (1692 ईस्वी) में करवाया था।

रानी गौड़जी अजमेर के सरवाड़ के राजा शिवराम गौड़ की पुत्री थी। राजा शिवराम गौड़ का सम्बन्ध बंगाल के प्रसिद्ध गौड़ वंश से था।

लगभग तीन सदियाँ गुजर जाने के पश्चात भी यह बावड़ी काफी अच्छी दशा में मौजूद है। बावड़ी की लम्बाई चौड़ाई काफी अधिक नहीं है लेकिन फिर भी बावड़ी की भव्यता में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है।

बावड़ी की गहराई तीन या चार तलों की है। नीचे के तलों में जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। सबसे ऊपर गलियारे के रूप में एक छतरी बनी हुई है।

इस छतरी के दोनों तरफ दो शिलालेख लगे हुए हैं जिसे इस बावड़ी के निर्माण के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। बावड़ी के पास में ही शिवजी का प्राचीन मंदिर स्थित है। 

कालीबाय की बावड़ी - Kalibay Stepwell


इसके बाद खंडेला की एक प्राचीन बावड़ी का नाम आता है जिसे कालीबाय की बावड़ी कहा जाता है।

यह बावड़ी खंडेला से लगभग डेढ़ किलोमीटर दक्षिण दिशा में पलसाना रोड पर स्थित है। बावड़ी का निर्माण कार्य अग्रवाल गर्ग गोती कोल्हा के पुत्र पृथ्वीराज एवं उसके पुत्र रामा और बाल्हा ने करवाया था।

पंडित झाबरमल शर्मा ने इस बावड़ी से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार बावड़ी का निर्माण कार्य संवत् 1575 फागुन सुदी 13 से शुरू हुआ एवं विक्रम संवत 1592 जेठ सुदी को पूर्ण हुआ।

इस प्रकार इस बावड़ी के निर्माण कार्य में कुल 17 वर्षों का समय लगा था। उस समय खंडेला पर निर्बाण राजाओं का शासन था एवं तत्कालीन शासक का नाम रावत नाथू देव निर्बाण था।

जब बावड़ी का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब दिल्ली पर सुल्तान इब्राहीम लोदी का शासन था एवं जब निर्माण कार्य पूर्ण हुआ तब दिल्ली पर बादशाह हुमायूँ का शासन था।

इस प्रकार इस बावड़ी के निर्माण कार्य के दौरान दिल्ली पर तीन शासकों ने शासन किया। दिल्ली में सत्ता परिवर्तन भी हुआ एवं सत्ता की बागडोर अफगानों से मुगलों के हाथ में आ गई। सुलतानों की जगह बादशाह शासक बन गए।

सीकर स्थित हरदयाल संग्रहालय की क्यूरेटर धर्मजीत कौर के अनुसार इस बावड़ी की दीवारों पर 8वीं शताब्दी की प्रतिमाएँ लगी हुई है। धर्मजीत कौर के इस कथन के बाद बावड़ी के और भी अधिक प्राचीन होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

देखने में यह बावड़ी आयताकार रूप में लगभग चार या पाँच मंजिला गहरी प्रतीत होती है। बावड़ी के पीछे की तरह एक कुआँ बना हुआ है। बावड़ी के अवशेषों को देखकर इसकी स्थापत्य कला का अंदाजा लगाया जा सकता है।

बावड़ी को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अपने उपयोग के समय यह बहुत से लोगों की प्यास भी बुझाती होगी।

हमारे पुरखों ने जिस जतन और प्यार से इस बावड़ी को संजोकर रखा था, हम उससे दुगने जतन से इसे नष्ट करने में लगे हुए हैं।

वर्तमान में इस बावड़ी की हालत अत्यंत दयनीय है। स्थानीय निवासियों ने इसे कूड़ादान बना दिया है। इसके अन्दर जाने का रास्ता भी पूरी तरह से अवरुद्ध है।

लगता है कि अब वह दिन दूर नहीं है जब हमारे पुरखों की ये अनमोल निशानी, इनके प्रति हमारे बेरुखेपन और लापरवाही की वजह से जमींदोज हो जाएगी।

राजस्थान सरकार द्वारा प्रकाशित सुजस पत्रिका के सितम्बर 2017 के अंक में पेज नंबर 48-49 पर इस बावड़ी को जगह दी गई है।

मूनका की बावड़ी - Munka Stepwell


जैसा कि नाम से विदित हो रहा है कि इस बावड़ी का सम्बन्ध किसी मूनका परिवार या इसके किसी सदस्य से रहा है।

यह बावड़ी उदयपुरवाटी मार्ग पर धीरज गढ़ से दाँई तरफ अन्दर जाकर है। बावड़ी के बगल में श्री रामानंद आश्रम स्थित है जिसका रास्ता बावड़ी के अन्दर से जाता है। रामानंद आश्रम में एक प्राचीन शिवलिंग स्थित है।

बावड़ी की लम्बाई और चौड़ाई बहुत अधिक नहीं है लेकिन बावड़ी की गहराई तीन तलों की है। सबसे नीचे के तल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। बावड़ी के पीछे की तरफ प्रत्येक तल में गलियारा बना हुआ है।

बावड़ी के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों तरफ विश्राम के लिए स्थान है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये स्थान राहगीरों के विश्राम के काम में आता होगा।

पलसानिया की बावड़ी - Palsaniya Stepwell


खंडेला की बावड़ियों में एक महत्वपूर्ण बावड़ी है पलसानिया की बावड़ी। जैसा कि नाम से विदित हो रहा है कि इस बावड़ी का सम्बन्ध किसी पलसानिया परिवार या इसके किसी सदस्य से रहा है।

यह बावड़ी उदयपुरवाटी मार्ग पर चुंगी नंबर दो पर राम जानकी मंदिर के बिलकुल पीछे एकदम सटकर स्थित है। यह बावड़ी खंडेला की एकमात्र बावड़ी है जो उदयपुरवाटी मार्ग पर स्थित है।

राम जानकी मंदिर की छत पर बजरंगबली की विशाल प्रतिमा स्थित है। दूर से इस प्रतिमा को देखने पर यह आभास होता है जैसे यह प्रतिमा बावड़ी की दीवार पर स्थित है।

इस बावड़ी का मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना में जीर्णोद्धार हो जाने से इसका मौलिक स्वरूप खो गया है। मूल स्वरुप में नहीं होने से अब यह प्राचीन प्रतीत नहीं होती है।

बावड़ी की लम्बाई और चौड़ाई बहुत अधिक नहीं है लेकिन बावड़ी की गहराई तीन तलों की है। सबसे नीचे के तल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। ऐसा लगता है कि प्राचीन समय में यह बावड़ी और राम जानकी का मंदिर दोनों एक ही परिसर में थे।

बिंज्या की बावड़ी - Binjya Stepwell


बिंज्या की बावड़ी ब्रह्मपुरी मुहल्ले में वाटर वर्क्स के ऑफिस के पास स्थित है। इस बावड़ी के निकट ही खण्डलेश्वर महादेव का मंदिर और राजपरिवार की छतरियाँ स्थित है। बावड़ी साफ सुथरी और अच्छी दशा में है।

बावड़ी की लम्बाई और चौड़ाई बहुत अधिक नहीं है लेकिन बावड़ी की गहराई पाँच तलों की है। सबसे नीचे के तल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। बावड़ी के पीछे की तरफ प्रत्येक तल में गलियारा बना हुआ है।

किसी समय में यह बावड़ी इस क्षेत्र में जल का प्रमुख स्रोत रही होगी। बावड़ी का निर्माण कब हुआ और किसने करवाया, इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है लेकिन इसके नाम से पता चलता है कि इसका सम्बन्ध किसी बिंज्या नामक शख्सियत से अवश्य रहा है।

खंडेला के कुछ जागरूक युवाओं ने अभियान चलाकर इसकी सफाई भी की है लेकिन ये प्रयास केवल साफ सफाई तक ही सीमित रहते हैं।

समय के थपेड़ों ने कइयों को नष्ट कर दिया और कई नष्ट होने की कगार पर है फिर भी इनकी तरफ प्रशासन का अधिक ध्यान नहीं है।

निजी बावड़ियाँ तो फिर भी संरक्षित रह जाती हैं लेकिन उन बावडियों की हालत बहुत ज्यादा दयनीय है जो निजी नहीं है लेकिन अत्यंत प्राचीन और भव्य हैं।

ये बावड़ियाँ खंडेला की विरासत है जिन्हें सहेजकर सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि ये विरासतें ही खंडेला की पहचान है।

यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जिस खंडेला कस्बे में से कभी कान्तली नदी बहा करती थी, जिस खंडेला कस्बे में कभी 52 बावड़ियाँ हुआ करती थी, जिस खंडेला का सम्बन्ध महाभारत काल से रहा है उस खंडेला से लोग आज पेयजल की समस्या के कारण पलायन कर रहे हैं।

अगर हम जल के इन प्राचीन स्रोतों का संरक्षण कर इन्हें आम जन के उपयोग के लिए काम में लें तो पेयजल की कमी से निजात पाई जा सकती है।

अगर समय रहते इनका संरक्षण किया जाए तो ये बावड़ियाँ जल का स्रोत होने के साथ-साथ पर्यटक स्थल का भी कार्य करेंगी।

अगर आप प्राचीन धरोहरों को करीब से देखकर उन्हें जानने के इच्छुक हैं तो आपको खंडेला में स्थित इन बावड़ियों को अवश्य देखना चाहिए।

खंडेला की बावड़ियों की मैप लोकेशन - Map Location of Stepwells of Khandela








खंडेला की बावड़ियों के वीडियो - Videos of Stepwells of Khandela








लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I love to see old historical monuments closely, learn about their history and stay close to nature. Whenever I get a chance, I leave home to meet them. The monuments that I like to see include ancient forts, palaces, stepwells, temples, chhatris, mountains, lakes, rivers etc. I also share with you the monuments that I see through blogs and videos so that you can also benefit a little from my experience.

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